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#चाणक्य_नीति
बलवान शत्रु को उसके अनुकूल व्यवहार करके,
दुष्ट शत्रु को जैसा को तैसा व्यवहार करके, और
अपने समान शत्रु को बल या विनय से वश मे करना चाहिये!
#श्लोक
अनुलोमेन बलिनं प्रतिलोमेन दुर्जनम्!
आत्मतुल्यबलं शत्रुं विनयेन बलेन वा!!
#culture
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#चाणक्य_नीति
व्यक्ति मनपसंद भोजन पाकर,
मोर मेघ गर्जना से,
साधुजन लोगो की धन सम्पत्ति बढते देख कर,
और,
#दुष्ट_लोग दूसरॊ को मुसीबत मे देखकर बहुत ही खुश हो जाते है!
#श्लोक
तुष्यंति भोजने विप्रा मयूरा घनगर्जिते!
साधव: परसम्पत्तौ खल: परविपत्तिषु!!
#culture
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#मनुस्मृति
जो व्यक्ति दुसरे प्राणियो को बंधन रखकर, वध करके कलेश नही देते, ऎसे सभी प्राणियो के हित की कामना वाला व्यक्ति #अनन्त_सुख प्राप्त करता है!
#श्लोक
यो बन्धन् वधक्लेशान्प्राणिनां न चिकीर्षति!
स सर्वस्य हितप्रेप्सु: सुखमत्यन्तमश्नुते!!
#culture
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#मनुस्मृति
दूसरो को न सतानेवाले(अहिंसक),गाय,भैंस, बकरी,घोडा जैसे पालतु पशु-प्राणियोको निजि सुखकेलाभ की इच्छासे मारनेवालेको इस जीवनमे तथा परलोकमे कभी सुखनहीमिलेगा! वह जीताहुआभी मतृकसमानहै!
#श्लोक
योअ्हिंसकानि भूतानि हिनस्त्यात्मसुखॆच्छया!
स जीवंश्च मृतश्चैव नक्वचित्सुखमेधते!!
#culture
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#मनुस्मृति
आजिविका के लिये पशुवध करने वाले को उतना पाप नही लगता,
जितना वृथा मे ही मांस खाने से,
इस लोक मे और परलोक मे लगता है!
#श्लोक
न तादृशं भवत्येनो मृगहन्तुर्धनार्थिन: !
यादृशं भवति प्रेत्य वृथा मांसानि खादत:!!
#culture
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#चाणक्य_नीति
कन्या, अग्नि, गुरु, गाय, ब्राह्मण, वृध्द और शिशु को पैर से स्पर्श नही करना चाहिये!
#श्लोक
पादाभ्यां न स्पृशेदग्नि गुरुं ब्राह्मणेव च!
नैव गां न कुमारीं च न वृध्दं न शिशुं तथा!!
#culture
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#संकीर्तन_महिमा
पीडित,
विषादग्रस्त,
शिथिल,
भयभीत,
भयानक रोगो मे पडेहुए ,
मनुष्यभी एकमात्र #नारायण_नाम के संकीर्तन करके सभी दुखों से छूटकर सुखी होजातेहै!
#श्लोक
आर्ता विषण्णा: शिथिलाश्च भीता घोरेषु च व्याधिषु वर्त्तमाना!
संकीर्त्य नारायणशब्दमेकं विमुक्तदुखा: सुखिनो भवन्ति!!
#culture
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#चाणक्य_नीति
दो वार्तारत व्यक्तियो के बीच से,
आग और व्यक्ति के बीच से,
स्वामी और सेवक के बीच से,
हल और बैल कॆ बीच से,
होकर नही गुजरना चाहिये!
#श्लोक
विप्रयोर्विप्रवह्नयोश्च दमपत्यो: स्वामिभृत्ययो:!
अंतरेण न गंतव्यं हलस्य वृषभस्य च!!
#culture
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#मनुस्मृति
चरजीव जैसे गाय,भैसकेलिये अचर जैसे घास फ़ूस,व्याघ्रआदि दांतदाढवालो केलिये बिनादांत दाढवाले जैसे मृगआदि,
हाथवालोको,बिनाहाथवाले जैसे मछलियाँ,तथा शूरॊ के लिये कायरोको भोजनबनायाहै!
#श्लोक
चराणामन्नमचरा दंष्ट्रिणामप्यदष्ट्रिण:!
अहस्ताश्च सह्स्तानां शूराणां च भीरव:!!
#culture
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वेदोकास्वाध्याय न करना,सदाचारको त्यागदेना,आलस्य,समयपर ना जागना,करनेयोग्य कर्म टालतेरहना,दूषित अन्न का सेवनकरना,अभक्ष्य का भक्षकरना, अन्याय से उपार्जितकासेवन करना..
यह अकालमृत्यु समान है!
#श्लोक
अनभ्यासेन वेदानामाचारस्य च वर्जनात् !
आलस्यादन्नदोषाच्च मृत्युर्विप्राञ्जिघांसति!!
#culture
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#चाणक्य_नीति
संतोष रूपी अमृत से तृप्त और शांत चित्त वाले व्यक्तियो को जो शांति प्राप्ति होती है ,वह इधर उधर दौडने, भटकने वाले असंतोषी और अशांत व्यक्ति को वैसे अच्छी शांति नही मिलती है !
#श्लोक
संतोषामृत-तृप्तानां यत्सुखं शांतचेत्साम् !
न च तद् धनलुब्धानामितश्चेतश्च धावताम् !!
#culture
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#चाणक्य_नीति
धन और अन्न के लेनदेन मे,
किसी हुनर को सीखने मे,
खाने पीने मे,
हिसाब किताब मे,
जो व्यक्ति संकोच नही करता,
वह व्यक्ति सदा सुखी रहता है!
#श्लोक
धन-धान्यप्रयॊगेषु विद्यासंग्रहणेषु च!
आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्ज: सुखी भवेत्!!
#culture
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